समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड
पेशावर विद्रोह की 94 जयंती पर चंद्र सिंह गढ़वाली और उनके संग्रामि सैनिक साथियों को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से राजकीय इंटर कालेज ढेला रामनगर में याद किया गया। कार्यक्रम के तहत बच्चों ने चंद्र सिंह गढ़वाली का चित्र बनाया और उस समय की घटना पर डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। उस विद्रोह पर बातचीत रखते हुए अंग्रेजी प्रवक्ता नवेंदु मठपाल ने बताया कि 23 अप्रैल 1930 में चंद्र सिंह गढ़वाली एवं उनकी बटालियन ने पेशावर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहे निहत्थे पख्तूनों पर गोली चलाने से मना कर विद्रोह कर दिया। फौज में रहते हुए स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलाने से इंकार करने की इस घटना ने अंग्रेजों को भी हतप्रभ कर दिया। इस घटना ने अंग्रेजों को इस कदर हिला कर रख दिया कि इन सिपाहियों पर जब कार्यवाही करने की नौबत आई तो अंग्रेजी ने 23 अप्रैल को आदेश नहीं मानने का मुकदमा उन पर नहीं चलाया बल्कि 24 अप्रैल को हुक्म उदूली का मुकदमा चला कर इनका कोर्ट मार्शल किया। भारत के स्वाधीनता आंदोलन का एक गौरवशाली अध्याय है,जहां बेहद कम पढ़े-लिखे साधरण सिपाहियों ने अंग्रेजों की फूट डालो-राज करो की नीति को पलीता लगा दिया। गढ़वाली फौज को पेशावर में उतारा ही इसलिए गया था ताकि इसे हिन्दू-मुसलमान का मामला बनाया जा सके। खान अब्दुल गफ्फार खान के लाल कुर्ती दल का प्रदर्शन होना था और गढ़वाली फौज से गोली चलवाई जानी थी। इसे सीधे-सीधे साम्प्रदायिक विभाजन की खाई चौड़ी होती। पेशावर में गोली चलाने की भूमिका बनाते हुए, अंग्रेज अफसर ने इन सिपाहियों को हिन्दू-मुसलमान के झगड़े की बात ही समझाने चाही। अंग्रेज अफसर ने कहा, पेशावर में 94 फीसदी मुसलमान हैं, और दो फीसदी हिंदू हैं। मुसलमान हिंदू की दुकानों को आग लगा देते हैं,शायद हिन्दुओं को बचाने के लिये हमें बाजार जाना पड़े और इन बदमाशों पर गोली चलानी पड़े। अंग्रेज अफसर के जाते ही चन्द्र सिंह गढ़वाली सिंह ने अपने साथियों को समझाया -”इसने जो बातें कही हैं सब झूठ हैं। हिंदू-मुसलमान के झगड़े में रत्ती भर सच्चाई नहीं है. न ये हिंदुओं का झगड़ा है न मुसलमानों का झगड़ा है। कांग्रेस और अंग्रेज का.जो कांग्रेसी भाई हमारे देश की आजादी के लिये अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रहे हैं, क्या ऐसे समय में हमें उनके ऊपर गोली चलानी चाहिये? हमारे लिये गोली चलाने से अच्छा यही होगा कि अपने को गोली मार ले। पेशावर में गढ़वाल राइफल के इन सिपाहियों ने जो कारनामा अंजाम दिया,उसने इस देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बुलन्द किया.अंग्रेजों द्वारा इन्हें मुसलमानों के खिलाफ घृणा के सिपाही में तब्दील करने की कोशिश को ध्वस्त कर दिया। इस मौके पर कला शिक्षक प्रदीप शर्मा के दिशा निर्देशन में जूनियर कक्षा के बच्चों ने चंद्र सिंह गढ़वाली का चित्र बनाया और सीनियर बच्चों द्वारा पेशावर विद्रोह पर एक डॉक्यूमेंट्री भी देखी गई। इस मौके पर प्रधानाचार्य श्रीराम यादव, नवेंदु मठपाल, प्रदीप शर्मा, सीपी खाती, बालकृष्ण चंद, सुभाष गोला, जया बाफिला, उषा पवार, पद्मा आदि मौजूद थे।