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आज शुक्रवार को हल्द्वानी में पत्रकार वार्ता में पहाड़ी आर्मी संगठन के संस्थापक अध्यक्ष हरीश रावत ने कहा कि उत्तरप्रदेश में रहने के दौरान ही पर्वतीय क्षेत्र के जल, जंगल और जमीन से जुड़े कई अधिकार छीन लिए गए थे। अपनी संस्कृति, विरासत, जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए उत्तराखंड में लम्बे समय से आंदोलन हो रहा है। एक तरफ जहां उत्तराखंड में सख्त भू-कानून की मांग की जा रही है तो वहीं इस राज्य को संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा भी उठने लगा है। आखिर क्या है भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची और उत्तराखंड के इससे कैसे लाभ मिलेगा? ब्रिटिश सरकार ने भी 1931 में पहाड़ को ये स्टेट्स दिया था, लेकिन यूपी ने छीन लिया था। उत्तराखंड कोसंविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग। उत्तराखंड में सख्त भू-कानून और भारत के संविधान में निहित 5वीं अनुसूची में शामिल करने मांग जोरशोर से उठने लगी है. पहाड़ में इन दोनों मांगों को लेकर अब लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं. अब सवाल यही है कि उत्तराखंड को भारत के संविधान निहित 5वीं अनुसूची में शामिल होकर क्या लाभ मिलेगा? इसी पर पहाड़ी आर्मी संगठन के संस्थापक अध्यक्ष हरीश रावत ने विस्तार से जानकारी बताई। उन्होंने बताया कि ब्रिटिश सरकार ने पहाड़ी इलाकों को दिया था विशेष दर्जा। यूपी के पहाड़ी जिलों को ब्रिटिश काल से ही ट्राइब स्टेट्स मिला हुआ था लेकिन आजादी के बाद यूपी सरकार ने पहाड़ी जिलों से ट्राइब स्टेट्स छीन लिया था। जो उत्तराखंड को अलग राज्य बनने के बाद भी नहीं मिला है. साल 1931 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने भी तब के यूपी के पहाड़ी जिलों (आज के उत्तराखंड) में Scheduled Districts Act 1874 (अनुसूचित जिला अधिनियम 1874) यानी ट्राइब स्टेट्स लागू किया था. कुल मिलाकर उत्तराखंड को ब्रिटिश सरकार में वही अधिकार मिले थे, जो आज के संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची में है. ब्रिटिश काल में पहाड़ में दो जिले थे, एक अल्मोड़ा और दूसरा ब्रिटिश गढ़वाल. वहीं टिहरी अलग से रियासत थी। पत्रकार वार्ता में उत्तराखंड एकता मंच के एडवोकेट संजय राठोर, कैलाश डालाकोटी गौरव सिंह भी मौजूद रहे।