रामनगर में क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को 59वीं पुण्यतिथि पर याद किया

समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड 

आजादी के आंदोलन के एक प्रमुख क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को आज शनिवार 20 जुलाई को‌ 59वीं पुण्यतिथि पर रामनगर के राजकीय इंटर कालेज ढेला में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ याद किया गया। कार्यक्रम में बच्चों को उनके जीवन,कार्यों के बाबत जानकारी दी गई,उनके जीवन से संबंधित फिल्म दिखाई गई।‌ जूनियर कक्षा के बच्चों ने उनका चित्र बनाया। कार्यक्रम की शुरुआत बटुकेश्वर दत्त के चित्र पर माल्यार्पण से हुई। उनके बारे में बताते हुए अंग्रेजी प्रवक्ता नवेंदु मठपाल ने कहा आज हमारी आजादी के एक प्रमुख क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त को याद करने का दिन है। आज ही के दिन 1965 में उनकी मृत्यु हुई थी।1924 में, बटुकेश्वर की मुलाक़ात भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद (दोनों क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन [HRA] के सदस्य थे) से हुई और वे HRA में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए। बटुकेश्वर दत्ता और भगत सिंह दोनों ने 8 अप्रैल 1929 को दो विधेयकों – पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में धुआं बम फेंके। बम फेंकते समय इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाया गया और विधानसभा में ‘बहरों को सुनाओ’ शीर्षक से पर्चे फेंके गए। बहादुर लोगों ने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया ताकि अन्य क्रांतिकारियों को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने के लिए प्रेरित किया जा सके। उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और इस कृत्य ने भारतीय धरती पर ब्रिटिश औपनिवेशिक जड़ों को हिला दिया। जहां भगत सिंह को जॉन सॉन्डर्स की हत्या के लिए फांसी दी गई, वहीं बटुकेश्वर दत्ता को अंडमान की सेलुलर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। बटुकेश्वर दत्ता को अन्य काला पानी कैदियों की तरह क्रूर औपनिवेशिक अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उन्होंने राजनीतिक कैदियों के साथ दुर्व्यवहार और भेदभावपूर्ण और अमानवीय जेल स्थितियों के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू की। जेल से रिहा होने के तुरंत बाद उन्हें तपेदिक हो गया, जिसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। हालांकि, यह स्वतंत्रता के लिए लड़ने के उनके जज्बे को नहीं रोक सका। उन्होंने 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।आजाद भारत में भी वे लगातार आम जन की बेहतरी के लिए संघर्षरत रहे। खुशी शर्मा ने उनके द्वारा 8 अप्रैल 1929 को ब्रिटिश असेंबली में फेंके गए पर्चे का वाचन किया। कला शिक्षक प्रदीप शर्मा के निर्देशन में बच्चों ने उनका चित्र बनाया। इस दौरान प्रधानाचार्य श्रीराम यादव, महेंद्र आर्य, हरीश आर्य, नवेंदु मठपाल, बालकृष्ण चंद्र, सुभाष गोला, संजीव कुमार, उषा पवार, दिनेश निखुरपा आदि मौजूद थे।

 

 

 

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