समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड
पिछले पांच दशक और खास कर राज्य बनने के ढाई दशक बाद उत्तराखण्ड का प्राकृतिक चेहरा-जल जंगल जमीन, खनन, बांध, सड़क आदि कितना और घटा है, इसे जानने व समझने के लिए अस्कोट आराकोट अभियान चल रहा है। अस्कोट-आराकोट अभियान बीती 25 मई से शुरू हो चुका है इसमें चिपको आंदोलन के केंद्र गौरा देवी के गांव रैणी, चमोली से रचनात्मक शिक्षक मंडल का एक दल भी भागीदारी करेगा। यह जानकारी शिक्षक मंडल के राज्य संयोजक नवेंदु मठपाल ने चमोली को रवाना होने से पहले दी। अभियान का यह पचासवां यानी स्वर्ण जयंती साल भी है। इस बार अभियान की प्रमुख थीम ‘स्रोत से संगम’ रखी गई है ताकि नदियों से समाज के रिश्ते को गहराई से समझा जा सके और उनकी सेहत पर पड़ रहे दबावों को सामने लाया जा सके।
अभियान में उत्तराखण्ड की अनेक सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता; विभिन्न विश्वविद्यालयों के शोधार्थी और प्राध्यापक, उत्तराखंड-हिमाचल के इंटर कालेजों, हाईस्कूलों के विद्यार्थी और शिक्षक, पत्रकार, लेखक, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा देश-विदेश के हिमालय प्रेमी भी शिरकत करेंगे। मुख्य यात्रा के अलावा इस बार अनेक टोलियां दूसरे मार्गों से अपनी नदी अध्ययन यात्राएं आयोजित करेंगी। स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी अपने-अपने इलाके की नदियों की सेहत का जायजा लेने के लिए छोटी अध्ययन यात्राएं निकालेंगे और अपने परिवेश की वास्तविक समस्याओं पर चिंतन करने की शुरुआत करेंगे।