दमुवाढूंगा के निवासी सड़क से सदन तक आंदोलन को बाध्य, यह है वजह

समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड 

दमुवाढूंगा क्षेत्र वर्ष 1952 से बसा चला आ रहा है। इस क्षेत्र में करीब 7000 परिवारों के भूमिधरी अधिकारों के संबंध में आज शनिवार को प्रेस वार्ता की गई। इसमें स्थानीय निवासियों व कांग्रेस महानगर अध्यक्ष एडवोकेट गोविंद बिष्ट ने बताया कि वर्ष 1965 में धारा 20 भारतीय वन अधिनियम में 655 एकड़ भूमि को वन क्षेत्र की अधिसूचना जारी की गई। जिसे क्षेत्रवासी नित्यानंद भट्ट द्वारा न्यायिक प्रक्रिया द्वारा चुनौती दी गई। इसमें निचली अदालत से सर्वोच्च न्यायालय तक मुकदमा लड़ा गया और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वन विभाग की S.L.P खारिज की एवं क्षेत्र को आरक्षित वन क्षेत्र से मुक्त किया जिसके बाद श्री नित्यानंद भट्ट जो की 8 ऐकड़ भूमि के कबजेदार थे एवं उनके द्वारा घृत भूमि का विनियमितिकरण करा लिया गया। इसके उपरांत पुनः वर्ष 1993 मै धारा 4 भारतीय वन अधिनियम के अंतर्गत 643 ऐकड़ भूमि के संबंध मै पुनः अधिसूचना जारी कर उक्त क्षेत्र को वन क्षेत्र घोषित करने हेतु प्रक्रिया जारी की गई जबकि भारतीय वन अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत जारी अधिसूचना को अविधिक घोषित करते हुए निरस्त किया जा चुका था। जिसके उपरांत तत्कालीन काँग्रेस शासित सरकार द्वारा उत्तराखंड जमींदारी विनाश एवं भू-सुधार अधिनियम 1950 की धारा 2 के अंतर्गत एक संशोधन दिनांक 30.11.2016 को किया गया और उत्तराखंड अधिनियम संख्या 25/2016 माध्यम से धारा 2 उप धारा 4 प्रतिस्तापित की गई तदोउपरांत अधिसूचना संख्या 2369/XVIII (2)/2016-2(5)/2016 दिनांक 26.12.2016 जारी कर उत्तराखंड जमींदारी विनाश एवं भू-सुधार अधिनियम 1950 की धारा 2 की उप धारा 4 में अंतर निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए महामहिम राज्यपाल द्वारा जनपद नैनीताल की तहसील हल्द्वानी के दमुआदूँगा अंतर्गत आरक्षित वन क्षेत्र से अनारक्षित वनक्षेत्र भूमि पर उक्त अधिनियम की पूर्ति हेतु प्रसार किए जाने की सहर्ष स्वीकृति प्रदान की गई एवं 3051 /xv111(2)/2016-2(5)/2016 दिनांक 26.12.2016 द्वारा इस ग्राम दमुवाढूंगा के अवैध कब्जेदारों को धारा 131 जमींदारी विनाश उन्मूलन अधिनियम के अंतर्गत असंक्रमणीय अधिकार वाला भूमिधर घोषित किया गया। इन अधिसूचनाओं के अनुपालन में वर्ष 2016 को विहित प्रक्रियाओं को प्रारंभ कर सर्वेक्षण एवं अभिलेख की प्रक्रिया आरंभ की गई किन्तु वर्तमान सरकार द्वारा दमुवाढूंगा वासियों के प्रति गैर जिम्मेदाराना रुख अपनाते हुए 4 वर्षों में भी सर्वेक्षण कार्य को पूर्ण नही किया गया तथा वर्ष 2020 में सर्वेक्षण एवं अभिलेख प्रक्रियाओं के कार्य को बंद कर दिया गया । जिसमें शासनादेश द्वारा 1/3 भू-भाग कृषि ना होने के कारण भू-राजस्व अधिनियम की धारा 48 का जिक्र कर विहित प्रक्रिया को रोक दिया गया जबकि विधिक तौर पे ऐसी स्तिथि में 39 भू- राजस्व अधिनियम के अंतर्गत माननीय कलेक्टर को जिम्मेदारी निहित हो जाती है और किसी अन्य प्रक्रियाओ के माध्यम से पारित कानून का अनुपालन करवाया जाना आवश्यक हो जाता है। जिसके विपरीत विगत 8 वर्षों से शासन एवं प्रशासन द्वारा अपनी जिम्मेदारियों से दूर होकर उपरोक्त पारित कानून के विपरीत कार्य कर समस्त क्षेत्र की जनता को उनके समस्त मूल विधिक अधिकारो से दूर रखा गया है एवं पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा मालिकाना हक दिए जाने के बावजूद आज 8 वर्षों बाद भी संशोधित कानूनों पर अमलीजामा नहीं पहनाने तथा इसके विपरीत अविधिक घोषणाएं करके मुख्यमंत्री जनता में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं। सरकार द्वारा 8 वर्षों से पारित कानूनों का अनुपालन नहीं करने से जनता के विधिक एवं मूल अधिकारों का हनन हो रहा है जिससे जनता में आक्रोश है और जनता सरकार के खिलाफ सड़क से सदन तक आंदोलन करने के लिए बाध्य हैं।

 

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