समाचार शगुन उत्तराखंड
उत्तराखंडी लोकभाषाओं की चिनाण पछयाण के लिए समर्पित संस्था दुदबोली की मासिक बैठक में कुमाउंनी के वरिष्ठ कवि शेरदा अनपढ़ के साहित्य पर चर्चा हुई। कार्यक्रम की शुरुआत रंगकर्मी गणेश पंत द्वारा शेरदा की कविता द्वि दिनक ड्यर शेरूआ य दुनिय में के सस्वर गायन से हुई। बातचीत को आगे बढ़ाते हुए प्रो गिरीश चंद्र पंत ने कहा शेरदा की रचनाओं कि सबसे बड़ी विशेषता उसका पहाड़ी जनजीवन से जुड़ाव तो रहा ही है साथ ही वह सामाजिक समस्याओं और विषताओं को भी हास्य-व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। लेकिन शेरदा के व्यंग्य में हमेशा हास्य ही नहीं होता कभी-कभी उनका व्यंग्य जीवन के यथार्थ की गंभीरता को भी बहुत गहराई छू जाता है। शेरदा की सामाजिक एवं पारिवारिक संबंधों के परिपेक्ष में जीवन के यथार्थ को एक मृत शव के द्वारा व्यक्त करती मार्मिक लोकप्रिय कुमाउँनी व्यंग्य रचना है, “मुर्दाक बयान”:-
जब तलक बैठूँल कुनैछी, बट्यावौ-बट्यावौ है गे।
पराण लै छुटण नि दी, उठाऔ-उठाऔ है गे।
कुमाउनी कवि निखिलेश उपाध्याय ने कहा कुमाउनी
कविता विकास में शेरदा ‘अनपढ़’ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसका कारण है कि शेरदा ‘अनपढ़’ ने कुमाउनी कविताओं को आम जन के बीच हास्य के माध्यम से सबसे पहले पहचान दिलाई। अनपढ़ होते हुए भी उनकी कविताओं में वो सब कुछ था जिससे एक कवि की कविधर्मिता पूरी होती है। दुदबोली पत्रिका संपादक मंडल सदस्य नवेंदु मठपाल ने कहा शेर सिंह बिष्ट शेरदा अनपढ़ की प्रमुख रचनाएं हस्णे बहार,दीदी बैणी,जाठीक घुंगुर। ये कहानी है, नेफा और लद्दाख की,मेरी लाटी पाटी,कठौती में गंगा,हमार मैं बाप,फचेक,शेरदा समग्र रहीं।निखिलेश उपाध्याय,भुवन पपने ने इस मौके पर स्वरचित कविताओं का पाठ भी किया।इस मौके पर प्रो गिरीश चंद्र पंत,नवेंदु मठपाल,निखिलेश उपाध्याय,गणेश पंत,भुवन पपने,सी पी खाती, बी सी डंगवाल,देवेंद्र भाकुनी,गिरीश डोबरियाल मौजूद रहे।