समाचार शगुन उत्तराखंड
उत्तराखंडी लोकभाषाओं पर काम करने वाली संस्था दुदबोली की मासिक संगोष्ठी मेंं आज कुमाउंनी कवि गोपाल भट्ट की कुमाऊंनी कविताओं के हिंदी अनुवाद संग्रह “मैं फिर आऊंगा”पर मुख्य रूप से चर्चा हुई। संगोष्ठी में बोलते हुए प्रो गिरीश चंद्र पंत ने कहा मथुरादत्त मठपाल ने गोपाल भट्ट की कविताओं अनुवाद कर उसे व्यापक पाठकों तक पहुंचा बहुत बड़ा काम किया।इस कविता संग्रह में भट्ट की सौ कुमाउनी कविताओं का हिन्दी में अनुवाद है।गोपाल दत्त भट्ट ने कुमाउनी भाषा में धर्तीकि पीड़, अगिनि आंखर, फिर आल फागुण, हिटने रवौ-हिटने रवौ आदि काव्य संग्रहों की रचना की है। हिदी में उनके काव्य संग्रह वक्त की पुकार, गोकुल अपना गांव, आदमी के हाथ, गहरे पानी पैठ आदि हैं। उनका गाया गीत गरुड़ा भर्ती कौसाणी ट्रेनिगा आज भी लोकप्रिय है और नियमित नजीबाबाद व अल्मोड़ा आकाशवाणी केंद्र से प्रसारित होता है। उनके कविता संग्रह कुमाऊं व गढ़वाल विवि के हिदी पाठ्यक्रम में भी पढ़ाए जा रहे हैं। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित गोपाल दत्त भट्ट ने शराब बंदी आंदोलन, जंगल बचाओ, पर्यावरण बचाओ आंदोलन समेत उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई है। निखिलेश उपाध्याय द्वारा पहाड़ के पैतृक घर के जीर्ण हालत में पहुंच चुके दरवाजे को बिंब बना अपनी कविता द्वार सुनाई। जिसमें द्वार अपने वारिस से बातचीत करते हुए अपने अतीत की कथा और वर्तमान की व्यथा कहते हुए एक उजली उम्मीद की बात कहता है। भुवन पपने द्वारा स्वरचित कविता पछिलां छुटि गो के बहाने पलायन के दर्द को सामने रखा। महेंद्र आर्य द्वारा हीरा सिंह राणा के गीत आहा रे जमाना को गाकर के सुनाया गया।नवेंदु मठपाल ने भट्ट के कविता संग्रह से उनकी कुमाऊनी गजल का वाचन किया।संगोष्ठी में तय किया गया कि इस माह ढेला इंटर कालेज के बच्चों के मध्य उत्तराखंडी लोकभाषाओं पर एक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।प्रत्येक माह के पहले रविवार को दुदबोली की बैठक आयोजित की जाएगी। इस मौके पर प्रो. गिरीश पंत, निखिलेश उपाध्याय, चंद्रप्रकाश खाती, नंदराम आर्य, महेंद्र आर्य, नवेंदु मठपाल, भुवन पपने, योग गुरु मुरलीधर कापड़ी मौजूद रहे।