हल्द्वानी में एबीवीपी के खिलाफ धरना, पछासं कार्यकर्ता व पत्रकार से मारपीट का मामला

समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड 

आज बुधवार को बुद्ध पार्क तिकोनिया में एबीवीपी द्वारा पछासं महासचिव महेश और कार्यकर्ता चंदन एवं पत्रकार परहमले के विरोध में प्रतिरोध सभा की गई। प्रतिरोध सभा का संचालन पछासं के महेश ने किया। प्रतिरोध सभा की शुरुआत में 2 अक्टूबर के ही दिन रामपुर तिराहा कांड, मुजफ्फरनगर में उत्तराखंड आंदोलन के शहीदों के लिए मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी। 2 अक्टूबर महात्मा गांधी की जयंती के मौके पर साम्प्रदायिक विभाजन के खिलाफ उनके प्रयासों के बारे में वक्ताओं ने बात रखी। यह सर्वज्ञात तथ्य है कि एक तरफ देश की आजादी पर तिरंगा फहराया जा रहा था दूसरी तरफ महात्मा गांधी साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए देशभर की यात्राएं कर रहे थे। 9 सितम्बर 1947 से 30 जनवरी 1948 को हत्या तक वह दिल्ली में रहकर साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए लगातार प्रयास करते रहे। 13 जनवरी को उन्होंने अनशन शुरू किया तो आरएसएस, हिन्दू महासभा, जमायते उलेमा के लोगों ने ‘शांति शपथ’ ली। वहीं 20 जनवरी को उनकी हत्या का असफल प्रयास हुआ और 30 जनवरी को उनकी हत्या कर दी गयी। ये दोनों प्रयास हिन्दू कट्टरपंथियों ने किए। वक्ताओं ने कहा कि हम एक ऐतिहासिक दिन पर एबीवीपी की गुंडागर्दी का विरोध कर रहे हैं। आज ही के दिन उत्तराखंड आंदोलन के लिए लोगों ने पुलिस बर्बरता का सामना करते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। ये बलिदान उत्तराखंडवासियों के लिए बेहतर अवसर और खुशहाल जीवन के लिए थे। जीवन की खुशहाली के लिए वो सरकार से मांग कर रहे थे, संघर्ष, आंदोलन कर रहे थे। उत्तराखंड में जगह-जगह मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। हल्द्वानी में ही पिछले समय में कामलुआगांजा में बढ़ई मजदूर को पीटने, मुस्लिम दुकानदारों को दुकानें खाली करने के लिए मजबूर करने, भक्त प्रह्लाद की मूर्ति पर साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने आदि साजिशें की गयीं। पुलिस के प्रयास इन्हें रोकने के लिए नाकाफी हैं उल्टा अक्सर पुलिस दबाव में काम करती दिखाई देती है। शहीद भगत सिंह के कार्यक्रम को रोककर, पछासं कार्यकर्ताओं पर हमलाकर एबीवीपी ने देशद्रोही चरित्र उजागर किया है। पत्रकार पर हमला कर इन्होंने दिखाया है कि ये समाज विरोधी हैं। एबीवीपी के गुण्डे ही थे जो कुछ समय पहले शहर में एक प्रतिष्ठित डॉक्टर से मारपीट कर रहे थे। अगर ये अभी भी खुले घूम रहे हैं तो इसके जिम्मेदार शहर का प्रशासन और पुलिस है। वक्ताओं ने कहा कि देश और जनता की खुशहाली के लिए हमेशा ही लोग सत्ता से, सरकारों से टकराते रहे हैं। देश की आजादी के अमर शहीदों से लेकर, राज्य आंदोलन के शहीदों तक हमें यही सबक मिलता है। आज इस रास्ते पर हिन्दू धर्म की आड़ लेकर साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने वाले और सत्ता संरक्षण प्राप्त ये संगठन और लोग फासीवादी तानाशाही कायम करना चाहते हैं। देश- समाज के लिए बलिदान करने वालों की विरासत हमें इनसे लड़ने के लिए मजबूती देती है। सभा में परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र, भाकपा-माले, समाजवादी लोक मंच, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, ठेका मजदूर कल्याण समिति, क्रांतिकारी किसान मंच, इंक़लाबी मजदूर केंद्र, प्रगतिशील भोजनमाता यूनियन, डॉल्फिन मजदूर संगठन, इंटरार्क श्रमिक यूनियन के अलावा स्वतंत्र पत्रकार एवं बुद्धिजीवियों ने सभा में अपनी बात रखी। सभा में महेश, चन्दन, गिरीश आर्या, उमेश विश्वास, कैलाश पाण्डे, ललित, रजनी, बिंदु गुप्ता, मदन पांडे, चम्पा गिनवाल, भुवन आर्या, प्रेम प्रसाद आर्य, कैलाश भट्ट, दिवान सिंह खनी, फिरोज आदि मौजूद थे।

 

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