उत्तराखंड में उपनल कर्मचारियों का भी हो वन टाइम सेटलमेंट

समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड

उपनल से संविदा में कार्यरत हजारों कर्मचारियों व उनके परिवार के प्रति सरकार का रवैया खेद जनक है। वर्ष 2004 में उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम का गठन हुआ (तब उपसुल) तब से लगभग 19 वर्ष की सेवा कर्मचारियों द्वारा 3500 अल्प मानदेय से 10-12 हजार प्रति माह में जारी है, सैकड़ों कर्मचारी रिटायर हो गए है और रिटायरमेंट की कगार में है । सरकार द्वारा कच्चे कर्मचारियों के लिए समय-समय पर नियमितीकरण नियमावली बनाई यथा 2010,13,16 अब 2024 की कवायद शुरू हुई है उसमें उपनल संविदा कर्मचारियों को शामिल न कर पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है। इन 19 वर्षों में आज भी कर्मचारी बढ़ती मंहगाई में 10-12हजार रुपए में जीवन यापन कर रहा है। चुनाव से पूर्व सरकार द्वारा संख्या बल को देखकर वर्ष 2016 में 2800 तथा वर्ष 2021 में 2000-3000 रूपए प्रोत्साहन राशि के रूप में बढ़ा दिया जिससे चुनाव में लाभ लिया जा सके। इन 19 वर्षों में बढ़ती हुई महंगाई में न डीए न एचआरए नाम मात्र के मानदेय 10-12 हजार को सरकार की उपलब्धि माने या कर्मचारियों के प्रति सरकार की अनदेखी कर्मचारियों को बंधुआ मजदूरी करने को बाध्य किया है,जबकि अल्प मानदेय में काम करते करते उम्र 40 -45 पार पहुंच गई है, इन 19 वर्षों में बारी- बारी सभी सरकारों ने कर्मचारियों को ठगने का काम किया कर्मचारी कच्चा हो या पक्का वह सरकार का औजार है जिसकी धार को कुंद कर सिर्फ काम लिया जा रहा है। चूंकि माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल से जनहित याचिका में कर्मचारियों के शोषण को संज्ञान में लेते हुए खंडपीठ ने न्यूनतम वेतन, और विभिन्न नियमितीकरण नियमावली के अनुसार चरणबद्ध तरीके से नियमितीकरण करने के आदेश दिए थे लेकिन सरकार ने एक बिंदु पर अमल करना मुनासिब नहीं समझा और मामले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी जबकि सरकार जानती है एक समान काम कर रहे कार्मिकों को न्यूनतम वेतन देना ही होगा उसके लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कर्मचारियों के विरुद्ध 20 लाख प्रति सुनवाई फीस लेने वाले अधिवक्ता को खड़ा किया है सरकार जानती है शक्तिशाली राज्य से अल्पवेतन भोगी उपनल कर्मचारी किसी भी प्रकार से नहीं लड़ सकते न ही कोर्ट अपना पक्ष मजबूती से रख पाएंगे। उपनल कर्मचारी संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष पूरन भट्ट ने कहा कि हम सरकार से अनुरोध करते है यदि उपनल कर्मचारियों को नियमावली में शामिल नही किया तो सड़क से लेकर सदन तक आन्दोलन किया जाएगा।

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