समाचार शगुन उत्तराखंड
समाजसुधारक और वंचित समुदाय की शिक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर देने वाले ज्योतिबा फुले को उनके 134 वें स्मृति दिवस पर ज्योतिबाफूले सांयकालीन स्कूल पुछड़ी रामनगर में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ याद किया गया।इस मौके पर बोलते हुए सांयकालीन स्कूल अभियान के संयोजक नवेंदु मठपाल ने कहा ज्योतिराव फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 महाराष्ट्र में हुआ। वे हिंदू समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के एक मजबूत आलोचक थे।फुले ने जाति व्यवस्था के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले लोगों के साथ होने वाले भेदभाव की निंदा की ।उन्होंने भारत में एक आंदोलन का नेतृत्व किया जिसका उद्देश्य एक नई सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना था जिसमें उच्च जाति,निम्न जाति जैसा कुछ नहीं होगा। फुले ने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी। यह मानते हुए कि सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा आवश्यक है , उन्होंने लड़कियों और निचली जातियों के बच्चों के लिए स्कूल स्थापित किए।जाति व्यवस्था के कारण उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए सत्यशोधक समाज नामक एक सुधार संस्था की स्थापना की।
अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए फुले ने किताबें, निबंध, कविताएँ और नाटक लिखे। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति गुलामगिरी ( गुलामी ) है, जो 1873 में प्रकाशित हुई थी।1890 में पुणे में उनकी मृत्यु हो गई। ज्योतिबा फूले को याद करते हुए उनके कार्यों में सक्रिय सहयोगी रहीं उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले,मित्र उस्मान शेख,उनकी बहन फातिमा बेगम को भी याद किया गया।इस मोके पर बच्चों द्वारा उनका चित्र भी बनाया गया। अनेक गीत गाते हुए अमर रहे का घोष भी किया गया। इस मौके पर सुजल कुमार,पिंकी,मो ताहिर,नंदराम आर्य,बालकृष्ण चंद,सुभाष गोला मौजूद रहे।