समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड
साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कुमाउंनी साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल को उनकी चौथी पुण्यतिथि पर उनकी कविताओं के साथ याद किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत उनके चित्र पर माल्यार्पण से हुई।इस मौके पर बोलते हुए प्रो.गिरीश चंद्र पंत ने कहा कुमाउनी भाषा और साहित्य में मथुरा दत्त मठपाल के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने रचना लेखन, संपादन, अनुवाद, प्रकाशन,संयोजन आयोजन आदि विभिन्न माध्यमों से कुमाउनी भाषा व साहित्य को समृद्ध बनाया,जो दीर्घकाल तक कुमाउनी भाषा साहित्य की दशा व दिशा निर्धारण में सहायक होंगे। मठपाल द्वारा कुमाऊनी भाषा के ठेठ शब्दों को अपनी कविता के माध्यम से भावी पीढ़ियों के लिए संजोया गया है उन्हें और उनकी कविता को कुमाऊनी का शब्दकोश कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। प्रो डी एन जोशी ने कहा मठपाल ने 36 साल लंबी अपनी रचना यात्रा में कुमाऊनी परिवेश के विशिष्ट और दुर्लभ शब्दों का अपनी कविता में संयोजन किया गया । मठपाल गद्य में भी रीतिकालीन कविता के समान शब्दों के चयन के चमत्कार से प्रेरित करते हैं।कवि राजाराम विद्यार्थी ने कहा मथुरा दत्त मठपाल की दो आरंभिक रचनाएं आंग आंग चिचेल है गो और पे में क्यापक क्याप के भेटनु वैचारिकतारचना और शैली की दृष्टि से मौलिक हैं।भिकियासैंण के विनायक इंटर कॉलेज जैसे दूरस्थ दुर्गम कॉलेज में कार्यरत रहने के बावजूद सीमित साधनों में जीने की आदत ने उनको अपनी साधना पर केंद्रित करने में सहायता की। साहित्यकार निखिलेश उपाध्याय ने कहा उन्होंने अपने को कुमाउनी परिवेश के रचनाकारों कलाकारों तक सीमित नहीं रखा बल्कि हिंदी, गढ़वाली,नेपाली में भी साहित्य रचने वाले साहित्यकारों को खोज खोज कर वे सामने ले
कुमाउनी कहानियों को उनकी किस्सागोई शैली के लिए याद रखा जाएगा। उनका गद्य साहित्य आंचलिकता को समर्पित है।महेंद्र आर्य ने कहा
मठपाल के साहित्यिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उनके संपादन कला है उनके द्वारा कुमाऊनी पत्रिका दुदबोली के संपादक के रूप में कुमाऊनी भाषा के मानकीकरण,साहित्य के संरक्षण प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
कविता के क्षेत्र में मठपाल का योगदान अविस्मरणीय और अमूल्य है कुमाऊनी कविता को शास्त्रीयता मानकों पर रचना के लिए उन्हें याद किया जाएगा उन्होंने मुक्त और मुक्तक कविताओं की रचना की।
सी पी खाती ने कहा अनुवादक के तौर पर मथुरादत्त मठपाल ने संस्कृत,अवधि,हिंदी,गढ़वाली से कुमाऊनी गद्य व काव्य में अनुवाद किया। मथुरा दत्त मठ पाल ने कुमाऊनी को कौथीगी साहित्य से निकालकर साहित्यिक गोष्ठियों तक पहुंचा। वे आजीवन कुमाऊंनी बोली साहित्य के संरक्षण के लिए समर्पित रहे यहां तक कि उनके द्वारा अपनी पेंशन की राशि भी कुमाऊनी साहित्य के संवर्धन के लिए खर्च कर दी जाती थी। उन्होंने कुमाउंनी की परंपरागत साहित्य परम्परा को नई दिशा प्रदान की।मठपाल ने कुमाऊंनी कविता को संस्कृत, हिंदी के छंदों से जोड़ा और भक्ति के हल्केपन को कम करके उसे गंभीर विषयों तक ले गए।। कुमाउंनी में छंद आधारित रचनाओं के लिए मठपाल का योगदान अविस्मरणीय है। वे कुमाउंनी में छंद विविधता लेकर आए। इस मौके पर मठपाल की अनेक कविताओं का सस्वर वाचन भी किया गया। मठपाल द्वारा लिखे गए साहित्य की प्रदर्शनी भी आकर्षण का केंद्र रही। कार्यक्रम में प्रो गिरीश चंद्र पंत, नंदिनी मठपाल, प्रभात ध्यानी, सीपी खाती, राजाराम विद्यार्थी, प्रो.डी एन जोशी, नंदराम आर्य, महेंद्र आर्य,गणेश पंत,गिरीश डोबरियाल गोपी, सीपी खाती, नवेंदु मठपाल, सुभाष गोला, पुष्पा मठपाल, विक्रम मावड़ी, जीतपाल कठैत, गब्बर सिंह बिष्ट, डा.पुष्पेंदु मठपाल मौजूद रहे।