समाचार शगुन उत्तराखंड
पेशावर विद्रोह के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली को आज बुधवार 25 दिसंबर को उनकी 133 वीं जयंती पर ढेला में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया। कार्यक्रम की शुरुआत उनके चित्र पर माल्यार्पण से हुई उसके बाद बच्चों ने 1857 के विद्रोह का प्रयाण गीत हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान और सरफरोशी की तमन्ना गाया।इस मौके पर बोलते हुए अंग्रेजी प्रवक्ता नवेंदु मठपाल ने कहा गढ़वाली और उनके साथियों का हौसला अंग्रेजों की 9 जेलें भी न तोड़ सकी। उन्हें कालापानी सहित 27 साल की सजा हुई. उन्होंने 13 साल अंग्रेजों की जेलों में बिताए। वे पेशावर विद्रोह के बाद भारत छोड़ो आंदोलन में भी उतरे और जेल गए।उन्हें पेशावर विद्रोह में कालापानी (20 साल) की सजा हुई।उनका शेष वेतन, पेंशन और रैंक अंग्रेजों ने छीन लिए थे।उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में दो बार में कुल 9 साल की सजा हुई। उन्हें जेल से रिहा करने के बाद भी गृह क्षेत्र गढ़वाल प्रवेश पर रोक लगाई गई।वे इन 9 जेलों में रहे।एबटाबाद, डेरा इस्माइलखां, बरेली, नैनी, लखनऊ, अल्मोड़ा, देहरादून, मिर्जापुर, बनारस। लखनऊ जेल में तीन बार और अल्मोड़ा जेल में दो बार। वे जेल से बाहर 11 साल बाद पत्नी से और 17 साल बाद पिता से मिल पाए। उनके लिए गांधीजी ने कहा था कि “मुझे एक चन्द्र सिंह गढ़वाली और मिल जाता तो देश पहले ही आजाद हो जाता”। वे पत्नी को चिट्ठी में यह लिख कर टिहरी रियासत की क्रांति में शामिल होने चल दिए थे कि शायद वे वापस नहीं लौट पाएंगे। इस मौके पर बच्चों को गढ़वाली के जीवन से संबंधित डाक्यूमेंट्री भी दिखाई गई।बच्चों ने चंद्रसिंह गढ़वाली का चित्र भी बनाया। इस मौके पर आदित्य बोरा, कोमल सत्यवली, निखिलेश पंचवाल, मानसी सत्यवली, विवेक फ़ुलारा, विवेक रावत मौजूद रहे।