114वीं जयंती पर याद किए गए क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त

समाचार शगुन उत्तराखंड 

आजादी के आंदोलन के क्रांतिकारी नायक भगतसिंह के सबसे नजदीकी साथी बटुकेश्वर दत्त को आज रामनगर के राजकीय इंटर कालेज ढेला में उनकी 114 वीं जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों के साथ याद किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत प्रभारी प्रधानाचार्य हरीश चंद्र एवं स्टाफ द्वारा उनके चित्र पर माल्यार्पण से हुई। उनके जीवन पर बातचीत रखते हुए अंग्रेजी प्रवक्ता नवेंदु मठपाल ने कहा कि बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को तत्कालीन बंगाल में बर्दवान जिले के ओरी गांव में हुआ था।

कानपुर में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनकी भगत सिंह से भेंट हुई। भगत सिंह से प्रभावित होकर बटुकेश्वर दत्त उनके क्रांतिकारी संगठन हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए. उन्होंने बम बनाना भी सीखा. क्रांतिकारियों द्वारा आगरा में एक बम फैक्ट्री बनाई गई थी जिसमें बटुकेश्वर दत्त ने अहम भूमिका निभाई। आठ अप्रैल 1929 को तत्कालीन ब्रितानी संसद में पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था। इसका मकसद था स्वतंत्रता सेनानियों,मजदूर नेताओं विशेष रूप से कम्युनिस्ट गतिविधियों से जुड़े लोगों पर पर नकेल कसने के लिए पुलिस को ज्यादा अधिकार देना, इसका विरोध करने के लिए बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर संसद में बम फेंके। ये दोनों क्रांतिकारी वहां से भागे नहीं और स्वेच्छा से गिरफ्तार हो गए। बाद में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी हुई जबकि बटुकेश्वर दत्त को काला पानी की सज़ा. काला पानी की सजा के तहत उन्हें अंडमान की कुख्यात सेल्युलर जेल भेजा गया। वहां से 1937 में वे बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना लाए गए, 1938 में उनकी रिहाई हो जल्द ही वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया। चार साल बाद 1945 में वे रिहा हुए। 1947 में देश आजाद हो गया. नवम्बर, 1947 में बटुकेश्वर दत्त ने शादी कर ली और पटना में रहने लगे. लेकिन उनकी जिंदगी का संघर्ष जारी रहा. कभी सिगरेट कंपनी एजेंट तो कभी टूरिस्ट गाइड बनकर उन्हें पटना की सड़कों की धूल छाननी पड़ी। 1964 में बटुकेश्वर दत्त अचानक बीमार पड़े। 17 जुलाई को वह कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर उनका देहांत हो गया। बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा को सम्मान देते हुए उनका अंतिम संस्कार भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के पास किया गया। इस मौके पर उनके जीवन से संबंधित एक डाक्यूमेंट्री भी देखी गई। उनका चित्र भी बनाया गया।इस मौके पर प्रभारी प्रधानाचार्य हरीश कुमार, सीपी खाती, नवेंदु मठपाल, दिनेश निखुरपा, बालकृष्ण चंद, सुभाष गोला, संजीव कुमार, उषा पवार, सविता रावत मौजूद रहे।

 

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