समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड
आजकल समाज में बढ़ते यौन उत्पीड़न के मामलो में पुख्ता साक्ष्य जुटाने हेतु फॉरेंसिक साइंस भी काफी अग्रसर होती जा रही है। इसके बावजूद अपराधियों की सुबूत मिटाने की कोशिश को विफल करने और उन्हें पकड़ने के लिए फोरेंसिक साईंस में एक नई सफल रिसर्च की गई है। इस रिसर्च को अफ्रीका जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित किया गया है। यह रिसर्च हल्द्वानी निवासी RIMT UNIVERCITY पंजाब में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत सिंदूजा गुप्ता ने अन्य सहायक प्रोफेसर मनीषा, तमोसा मुखर्जी, अमनदीप कोर, युवराज मेहता, सुभम सैनी के साथ मिलकर की है। इस रिसर्च के अनुसार फॉरेंसिक जांच में बलात्कार के ज्यादा मामलों में पीड़ित, अपराधी के कपड़े और अन्य सामान जैसे चादरें, तकिया, सोफा और अन्य वस्तुएं मिलती है, इनमें साक्ष्य हो सकते हैं। इनकी जांच करने के लिए प्रारंभ में एसिड फॉस्फेट का इस्तेमाल करते हैं और उसके बाद शुक्राणुओं की पुष्टि के लिए सूक्ष्म जांच करते हैं। इनके जरिए डीएनए निकाला जा सकता है। प्रयोगशाला में जांच के लिए प्रस्तुत किए गए सुबूतों को जानबूझकर धोया गया है, शुक्राणुओं की स्थिरता और एसिड फॉस्फेट की गतिविधि जानने के लिए 3 अलग -अलग प्रकार के कपड़ों को सामान्य पानी और डिटर्जेंट के पानी से बार -बार धोया गया। उन पर एसिड फॉस्फेट परीक्षण किया गया है और इस प्रयोग में दागों की माइक्रोस्कोपी देखी गई।
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RIMT UNIVERCITY पंजाब में फोरेंसिक साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर सिंदुजा गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि आजकल यौन शोषण के अपराधी अपराध करने के बाद पकड़े जाने के डर से साक्ष्य मिटाने की पूरी कोशिश करते हैं और अपराधी को जिन जिन सामानों में साक्ष्य होने का खतरा महसूस करता है, वह उसे बार-बार धोता है लेकिन अपराधी यह भूल जाता है कि फॉरेंसिक साइंस इन अपराधियो की सोच से काफी आगे निकल चुकी है। सिंदुजा गुप्ता ने दावा किया है कि सफलतापूर्वक की गई यह रिसर्च केस को दिशा देने और सॉल्व करने बहुत सहायक साबित होगी जिसकी वजह से सही अपराधियो को पकड़ने में मदद मिलेगी।