समाचार शगुन हल्द्वानी उत्तराखंड
हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की 77वीं पुण्यतिथि व हिंदी दिवस पर दुदबोली साहित्यिक संस्था द्वारा पर्वतीय सभा लखनपुर में कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर उनके जीवन और साहित्यिक कार्यों पर चर्चा करने के साथ साथ कुमाऊंनी के वरिष्ठ कवि मथुरादत मठपाल द्वारा संपादित पुस्तक नदी चली जायेगी और था मेरा घर भी यहीं कहीं से बर्तवाल की कविताओं का वाचन भी किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो गिरीश पंत ने हिमवंत कवि चन्द्र कुवर बर्त्वाल की जीवनी के बारे में बताते हुए कहा कि 20 अगस्त 1919 – 1947 हिन्दी के कवि थे। उन्होंने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का ‘कालिदास’ मानते हैं। उनकी कविताओं में प्रकृतिप्रेम झलकता है। चमोली जनपद के मालकोटी पट्टी के नागपुर गांव में 20 अगस्त 1919 को चंद्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म हुआ। उनके पिता भूपाल सिंह बर्तवाल अध्यापक थे। चंद्र कुंवर बर्तवाल की शुरुवाती शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। उसके बाद पौड़ी के इंटर कॉलेज से उन्होंने 1935 में उन्होंने हाई स्कूल किया। उन्होंने उच्च शिक्षा लखनऊ और इलाहाबाद में ग्रहण की।1939 में इलाहाबाद से स्नातक करने के पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय में उन्होंने इतिहास विषय से एम0 ए0 करने के लिये प्रवेश लिया। इस बीच उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई और वे 1941 में अपनी आगे की पढ़ाई छोड़ गांव आ गए।प्रकृति की खूबसूरती को अपनी लेखनी के माध्यम से बयां करते थे।निखिलेश उपाध्याय
ने कहा कि जो भी उनके मन में रहता कागज पर कलम की मदद से उकेर देते। कहा जाता है कि वे अपने लिखे काव्य, कविताओं को ना तो कहीं प्रकाशित करने के लिए देते ओर ना ही किसी पत्रिकाओं में देते। भुवन चंद्र पपने ने कहा कि उनपर शोध कर कई ने पी एच डी व डी लिट भी की है। चंद्र कुंवर बर्त्वाल कवितायें लिखते और अपने पास रख लेते, बहुत हुआ तो अपने मित्रों को भेज देते। इसे दुर्भाग्य ही कहे कि वे अपने जीवन काल में अपनी रचनाओं का सुव्यवस्थित रूप से प्रकाशन नहीं कर पाये। उनके मित्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा जी को उनकी रचनाये सुव्यवस्थित करने का श्रेय जाता है जिन्होंने उनकी 350 कविताओं का संग्रह संपादित किया । डा0 उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं व गीतों का प्रकाशन किया था। शोध संस्थान के सचिव रहे डॉक्टर योगंबर सिंह बर्तवाल ने भी उनकी रचनाओं को संग्रह करने व उनपर काम करने के लिए चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के माध्यम से उनके काम को सामने लाया । 14 सितम्बर 1947 को आकस्मिक 28 साल की उम्र में प्रकृति के चितेरे कवि इस दुनिया को अलविदा कह गए। चंद्रकुंवर बर्त्वाल ने बेहद ही कम उम्र में अपनी लेखनी के माध्यम से वो कर दिखया जिसे लिखने, बयां करने के लिए किसी साहित्यकार को दशकों का अनुभव चाइए होता है।डा0 उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं का प्रकाशन किया है।इस मौके पर निखिलेश उपाध्याय,भुवन पपने ,नवेंदु मठपाल,शंभू दत्त तिवारी,केदार दत्त कोठरी,चंद्रशेखर फुलारा,सी पी खाती,गिरधर मनराल मौजूद रहे।